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भीम बहादुर चौधरी

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Thursday, December 21, 2023

भारतीय संविधान का निर्माण

अध्याय 2 : भारतीय संविधान का निर्माण
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स्रोत : NCERT {6 to12} + एम. लक्ष्मीकांत 
भारतीय संविधान के निर्माण के लिये एक संविधान सभा   के गठन की आवश्यकता महसूस हुई जिसका विचार सर्वप्रथम  1934 में वामपंथी आंदोलन के प्रखर नेता एम. एन. रॉय ने रखा ।
1935 में पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की तरफ से भी संविधान सभा के गठन की आवाज उठाई गयी इसके पश्यात 1938 में जवाहर लाल नेहरू ने ब्रिटिश सरकार  के सामने यह प्रस्ताव रखा की भारत के संविधान का निर्माण वयस्क मताधिकार द्वारा चुनी गयी संविधान सभा द्वारा ही होना चाहिये इसमें कोई भी बाहरी हस्तक्षेप नही हो।
नेहरू जी के इस प्रस्ताव को अगस्त 1940{ अगस्त प्रस्ताव } में ब्रिटिश सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया गया ।
1942 में ब्रिटिश सरकार द्वारा " क्रिप्स मिशन " को संविधान निर्माण में सहायक एक प्रारूप के साथ भारत भेजा गया। संविधान के इस प्रारूप को  द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अपनाना था लेकिन मुस्लिम लीग ने इसे अस्वीकार कर दिया और भारत को 2 स्वतंत्र राष्ट्रों में विभाजित कर उनके लिये अपनी- अपनी संविधान सभाओं के गठन की बात की। 
क्रिप्स मिशन ने मुश्लिम लीग की इस माँग को अस्वीकार कर दिया।

संविधान सभा का गठन
★★★★★★★★

1946 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय संविधान के निर्माण हेतु एक मजबूत कार्ययोजना के साथ " कैबिनेट मिशन " को भारत भेजा जिसकी कार्ययोजना ने मुस्लिम को काफी हद तक सन्तुष्ठ कर दिया ।

 इस प्रकार " कैविनेट मिशन योजना " के आधार पर  1946 में ही संविधान सभा का चुनाव / गठन कर लिया गया।
संविधान सभा में  कुल सदस्यों की संख्या 389 होनी चाहिये थी जिनमें से 296 सीटों का आवंटन ब्रिटिश भारत और 93 सीटों का आवंटन देसी रियासतों के लिये था।

296 सीटों में से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 208, मुस्लिम लीग को 73 तथा छोटे समूह एवं स्वतंत्र सदस्यों को 15 सीट मिली।
देसी रियासतों को आवंटित 93 सीटों को पूर्ण रूप से नही भर पाया गया क्योंकि कुछ रियासतों ने ( जैसे हैदराबाद ) खुद को संविधान सभा से अलग रखने का निर्णय लिया ।

संविधान सभा की बैठक
★★★★★★★★★

9 दिसम्बर 1946 को संविधान सभा की प्रथम बैठक दिल्ली में सम्पन्न हुई जिसमें डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा को संविधान सभा का अस्थाई रूप से अध्य्क्ष चुना गया। इस अधिवेशन ( बैठक )
का मुस्लिम लीग ने बहिस्कार कर अलग से पाकिस्तान की माँग की।

2 दिन बाद , 11 दिसम्बर 1946 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थायी अध्य्क्ष घोषित किया गया।
इसके अलावा H C मुखर्जी और B N रॉय को क्रमशः संविधान सभा का उपाध्यक्ष तथा संवेधानिक सलाहकार नियुक्त किया गया ।
13 दिसम्बर 1946 को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा में एक "उदेश्य प्रस्ताव " पेश किया जिसे सर्व सम्मति से 22 जनवरी 1946 को पारित कर दिया गया।
आगे चलकर इसी उदेश्य प्रस्ताव मे परिवर्तन करके भारतीय संविधान की " प्रस्तावना " बनायी गयी।
धीरे धीरे करके संविधान सभा से खुद को अलग रखने वाली देसी रियासतें भी इसमें शामिल होने लगी और 28 अप्रैल 1947 में छह रियासतों के प्रतिनिधि  संविधान सभा के सदस्य बन चुके थे।

3 जून 1947 को भारत के बंटवारे को लेकर " माउंटबेटेन योजना " प्रस्तुत की गयी जिसके चलते अन्य रियासतों के ज्यादतर प्रतिनिधियों ने संविधान सभा में अपनी सीट ग्रहण कर ली।
मुस्लिम लीग के हटने पर संविधान सभा में  ब्रिटिश भारत के प्रान्तों की संख्या 296 से 229 तथा देसी रियासतों की संख्या 93 से 70 कर दी गयी।
22 जुलाई 1947 में तिरंगें झण्डे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया ।

24 जनवरी 1950 को संविधान सभा की अंतिम बैठक हुई जिसमें डॉ राजेन्द्र प्रसाद को भारत का प्रथम राष्ट्रपति घोषित करते हुए "वन्दे मातरम् " को राष्ट्रीय गीत तथा "जन-मन-गण" को राष्ट्रीय गान के रूप में अपनाया गया।

ठीक 2 दिन बाद 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू कर दिया गया।

संविधान निर्माण से सम्बंधित प्रमुख समितिया एवं उनके प्रमुख
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★भारतीय संविधान के निर्माण हेतु छोटी बड़ी कुल मिलाकर 13 कमेटियां गठित की गयी थी। जिनमे से प्रारूप समिति मुख्य थी जिसका गठन 29 अगस्त 1947 को डॉ भीम राव अम्बेडकर की अध्यक्षता में हुआ था।

प्रारूप समिति : डॉ. भीमराव अम्बेडकर

प्रांतीय संविधान समिति : सरदार बल्लभ भाई पटेल

संचालन समिति / प्रक्रिया नियम समिति : डॉ राजेन्द्र प्रसाद

संघ शक्ति समिति/संघीय संविधान समिति / राज़्यों से समझौता करने वाली समिति : प. नेहरू

संविधान का प्रभाव में आना
★★★★★★★★★★

डॉ बी आर अम्बेडकर ने 4 नवम्वर 1948 को सभा में  संविधान का अंतिम प्रारूप पेश किया जिस पर लगातार 5 दिनों ( 9 Nov 1948) तक आम चर्चा हुई।
संविधान पर दूसरी बार आम चर्चा 15 नबम्बर 1948 से 17 ऑक्टूबर 1948 तक हुई  इस दौरान 7653 संसोधन प्रस्ताव आये, जिनमे से वास्तव में 2473 पर ही चर्चा हुई।

संविधान पर तीसरी बार आम चर्चा 14 नबम्बर 1949 से शुरू हुई तथा 26 नबम्बर 1949 को भारतीय संविधान को  सभा में आम सहमति के बाद इसके अधिकाश प्रावधानों अपना लिया गया।
इसके पश्यात शेष प्रावधानों को अपनाते हुए 26 जनवरी 1950 को  भारतीय संविधान  को  सम्पूर्ण भारतवर्ष में पूर्ण प्रभाव से लागू कर दिया गया।
मूल संविधान में 395 अनुच्छेद तथा 8 अनुसूचियाँ थी।
 
संविधान को 26 जनवरी वाले दिन ही लागू करने का एक ऐतिहासिक महत्व रहा था क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसः के लाहौर अधिवेशन { 1929 } में पारित हुए संकल्प के आधार पर  " पूर्ण स्वराज " दिवस मनाया गया था।

**************  समाप्त  ************
अध्याय 1. भारतीय संविधान का विकास  
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1600 ई. में इग्लैंड भारत में " ईस्ट इण्डिया कंपनी के रूप में व्यापार करने आया था जिसका अधिकार उसे महारानी एलिजाबेथ प्रथम के चार्टर द्वारा प्राप्त था।
1765 में इस कंपनी ने व्यापार के अलावा बंगाल, उड़ीसा और बिहार के दीवानी अधिकार भी प्राप्त कर लिये और इस प्रकार इस कंपनी ने भारत में अपना शासन प्रारम्भ कर दिया जो 1773 से 1857 तक रहा ।

1773 का रेगुलेटिंग एक्ट
★★★★★★★★★

बंगाल के गवर्नर के पद को बदलकर 'गवर्नर जनरल' कर दिया जिस पर प्रथम नियुक्ति " लार्ड वारेन हेस्टिंग्स " को प्रदान की गयी।
"कोर्ट ऑफ़ डारेक्टर" जो कम्पनी की गवर्निंग बॉडी थी उसके माध्यम से ब्रिटिश सरकार का कंपनी पर अधिकार हो गया।
1774 में कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गयी जिसमे 1 मुख्य न्यायाधीश तथा 3 अन्य न्यायाधीश थे।

1784 का पिट्स इंडिया एक्ट 【 एक्ट ऑफ़ सेटेलमेंट】
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

कम्पनी के राजनैतिक मामलों के लिये एक नियंत्रण बोर्ड की स्थापना करके "द्वैध शासन व्यवस्था" को जन्म दिया।

1813 का चार्टर एक्ट
★★★★★★★★

बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल घोषित कर दिया गया और इस पद पर "लार्ड विलियम बैंटिक " को नियुक्ति प्रदान की गयी।
सिविल सेवकों के चयन हेतु भारतीयो के लिए खुली प्रतियोगिता का प्रस्ताव रखा जिसे कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर के विरोध के बाद समाप्त कर दिया।

1853 का चार्टर एक्ट
★★★★★★★★

गवर्नर जनरल की परिषद के विधायी एवं प्रशासनिक कार्यो को अलग रखा गया तथा सिविल सेवकों की खुली प्रतियोगिता हेतु 1854 में " मैकाले " समिति का गठन किया गया।

■ 1857 में प्रथम स्वाधीनता संग्राम 【 सिपाही विद्रोह 】के बाद भारत पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन को प्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश राजशाही को सौंप दिया जिसका शासनकाल 1858 से अगस्त 1947 तक रहा।

1858 का भारत शासन् अधिनियम
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भारत पर शासन ईस्ट इण्डिया कंपनी से छीनकर महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया तथा गवर्नर जनरल के पदनाम को बदलकर " भारत का वायसराय " कर दिया गया जिस पर सर्वप्रथम " लार्ड कैनिंग " को नियुक्त किया गया यह पद राजशाही के प्रतिनिधि के रूप में था।
द्वैध प्रणाली को समाप्त करके " भारत सचिव " पद नाम से एक नए पद का सर्जन किया गया ।

1861 का भारत परिषद अधिनियम
★★★★★★★★★★★★

वायसराय को अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया गया। कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीयो को शामिल करने की शुरुआत की गयी जिसके लिये 1862 में बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधान परिषद में शामिल किया गया।
मद्रास और बम्बई की सरकारों को विधायी शक्तिया पुनः सौपी गयी जो 1733 के रेग्युलेटिग एक्ट में उनसे छिन ली गयी थी। इस प्रकार इस विधेयक के द्वारा प्रान्तीय विधायिका का तथा देश के शासन का विकेन्द्रीयकरण प्रारम्भ हुआ।

1865 का अधिनियम
★★★★★★★★

प्रान्तों के गवर्नर जनरलों की विधायी शक्तियों में वृद्धि की गयी।

1869 का अधिनियम
★★★★★★★★

गवर्नर जनरल को विदेश में रहने वाले भारतीयो के सम्बन्ध में कानून बनाने का अधिकार प्रदान किया गया।

1876 का शाही उपाधि अधिनियम
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28 अप्रैल 1876 ई. को महारानी विक्टोरिया को भारत की सामाज्ञी घोषित कर दिया गया ।

1892 का अधिनियम
★★★★★★★★

केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों में गैर सरकारी सदस्यों की संख्या बढ़ाने हेतु निर्वाचन की व्यवस्था की गयी परन्तु बहुमत सरकारी सदस्यों का ही रहता था।
सदस्यों को वार्षिक बजट पर बहस करने और सरकार से प्रश्न पूछने का अधिकार प्रदान किया गया।
केंद्रीय विधान परिषद में सदस्यों की अधिकतम संख्या को 16 किया गया ।

1909 का अधिनियम 【 मार्ले - मिंटो सुधार 】
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{ उस समय लार्ड मार्ले इंग्लैड में भारत के राज्य सचिव और लार्ड मिंटो भारत में वायसराय थे }

केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदो के आकर बड़े स्तर पर बढ़ाया गया । केंद्रीय परिषद में सदस्यों की अधिकतम संख्या को 16 से 60 कर दिया गया। 
पहली बार भारतीयो के लिए वायसराय और गवर्नर की कार्यपरिषद के साथ एसोसिएशन बनाने का प्रावधान किया गया जिसमे " सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा " को प्रथम भारतीय विधि सदस्य बनाया गया।
पृथक निर्वाचन के आधार पर मुसलमानों को साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया जिस कारण लार्ड मिंटो को " साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व का जनक " कहा गया।

1919 का भारत सरकार अधिनियम【मांटेग्यू -चेम्स सुधार 】
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{उस समय मांटेग्यू भारत के राज्य सचिव एवं चेम्सफोर्ड भारत के वायसराय थे }

20 अगस्त 1917 को ब्रिटिश सरकार के घोषणा कर दी की वो भारत में भविष्य के लिये एक " उत्तरदायी सरकार " की स्थापना हेतु भारत शासन अधिनियम बनाने जा रही है जिसे 1919 में बनाकर 1921 से लागू कर दिया गया......

भारत में द्वैध शासन प्रणाली , प्रत्यक्ष निर्वाचन तथा द्विसदनीय व्यवस्था प्रारम्भ की गयी।
महिलाओं को वोट डालने का अधिकार दिया गया तथा सिविल सेवकों की भर्ती के लिये 1926 में केंद्रीय लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।

साइमन कमीशन या आयोग ,1927
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ब्रिटिश सरकार ने भारत में भारतीय जनता को संवैधानिक अधिकार प्रदान किये जाने की सम्भावनाओ को तलाशने के लिये 1927 में सर जान साइमन के नेतृत्व में 7 ब्रिटिश सांसदों का एक दल बनाकर उसे 1928 में भारत भेजा गया । इस दल में किसी भी भारतीय के शामिल ना होने के कारण इसे " श्वेत कमीशन " भी कहा गया और भारत में इसका विरोध किया गया।
1930 में साइमन कमीशन ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमे उसने भारत में द्वैध शासन प्रणाली, राज्यों में सरकारों का विस्तार , साम्प्रदायिक निर्वाचन एवं ब्रिटिश भारत के संघ की स्थापना को बनाये रखने की सिफारिशें की।

साम्प्रदायिक अवार्ड , 1932
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यह एक योजना थी जिसे अगस्त 1932 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमजे मैकडोनाल्ड ने घोषित किया था जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यको को प्रतिनिधित्व देना था।
बाद इस योजना में दलितों को भी शामिल कर लिया गया जिनके लिये अलग से निर्वाचन की व्यवस्था की गयी। इस बात से नाराज होकर गाँधी जी ने इस अवार्ड में पुनः संसोधन के लिए यरवदा जेल में अनशन प्रारम्भ कर दिया । बाद में कांग्रेसः के नेताओ और दलित नेताओं के बीच एक समझौता ( पूना समझौता ) हुआ जिसमें हिंदू निर्वाचन व्यवस्था में दलितों के लिए स्थान आरक्षित कर दिये गए ।

भारत शासन अधिनियम 1935
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इस अधिनियम को भारत के "मिनी संविधान " का दर्जा प्राप्त है इसमें 321 अनुच्छेद तथा 10 अनुसूचियाँ है।
इस अधिनियम के द्वारा -
भारत में संघात्मक सरकार की स्थापना की गयी तथा केंद्र और प्रान्तों में शक्तियों का विभाजन कर दिया गया। "द्वैध शासन प्रणाली " का राज्यों में अंत कर केंद्र में सुभारंभ किया गया।
दिल्ली में एक संघीय न्यायलय की स्थापना की गयी तथा दलित जातियों, मजदूर वर्ग, महिलाओं के लिये अलग से निर्वाचन की व्यवस्था की गयी । इसके अलावा संघीय लोक सेवा आयोग के साथ साथ प्रान्तीय सेवा आयोग और देश की मुद्रा पर नियंत्रण रखने के लिये भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना भी की गयी

भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947
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20 फरवरी 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री 'क्लीमेंट एटली' द्वारा यह घोषणा कर दी गयी की 30 जून 1947 को भारत में ब्रिटिश शासन को खत्म कर भारतवर्ष की सम्पूर्ण सत्ता उत्तरदायी भारतीय के हाथो में सौंप दी जायेगी।
इस घोषणा का मुस्लिम लीग ने विरोध शुरू कर दिया और वो पृथक राष्ट्र की माँग के लिये आन्दोलन करने लगी जिसके कारण 3 जून 1947 को ब्रिटिश सरकार ने अपनी घोषणा में संशोधित करते हुए पुनः कहा की 1946 में गठित संविधान सभा द्वारा बनाया गया संविधान उन्ही क्षेत्रों में लागू होगा जो इसे स्वीकार करेंगे।
इस कारण उसी दिन वायसराय "लार्ड माउंटबेटेन" ने विभाजन की योजना पेश की जिसे भारतीय कांग्रेसः तथा मुस्लिम लीग द्वारा सहर्ष स्वीकार कर लिया गया 
और इस प्रकार इस अधिनियम के द्वारा 15 अगस्त 1947 को भारत में पूर्ण रूप में ब्रिटिश शासन को समाप्त कर भारत तथा पाकिस्तान नामक दो स्वतन्त्र देशो का सर्जन कर दिया गया।

स्वतंत्र भारत का प्रथम मन्त्रीमण्डल { 1947 }
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प्रधानमंत्री : जवाहर लाल नेहरू
गृह, सूचना प्रसारण एवं राज्य मामले : सरदार बल्लभभाई पटेल
रक्षा मंत्री : सरदार बलदेव सिंह
श्रम मंत्री : जगजीवन राम
कानून मंत्री : डा.बी.आर. अम्बेडकर
स्वास्थ मंत्री : राजकुमारी अमृतकौर
शिक्षा मंत्री : मौलाना अबुल कलाम आजाद
कृषि एवं खाद मंत्री : डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
रेल एवं परिवहन मंत्री : डॉ. आर. मथाई
उधोग एवं आपूर्ति मंत्री : डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी
वाणिज्य मंत्री : सी.एच भाभा
संचार मंत्री: रफ़ी अहमद किदवई
वित्त मंत्री : आर.के. शेट्टी

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